
महाराजा कुमार रंजीत सिंह को भारतीय क्रिकेट का जनक कहा जाता है.
भारतीय क्रिकेट के जनक महाराजा कुमार रणजीत सिंह एक ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें इंग्लैंड में अंग्रेजों की टीम में शामिल किया गया तो उनका विरोध हुआ था. हालांकि, जब उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो एक वक्त ऐसा भी आया, जब अंग्रेजों ने बीमारी की हालत में भी उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उतार दिया. महाराजा ने भी अपनी टीम को निराश नहीं किया और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जोरदार रन बनाए थे. पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं फादर ऑफ इंडियन क्रिकेट के किस्से.
जामनगर के महाराजा कुमार रणजीत सिंह का जन्म 10 सितंबर 1872 को गुजरात के काठियावाड़ स्थित सरोदर गांव में हुआ था. साल 1889 में 16 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज भेजे गए थे. रणजी नाम से जाने जाने वाले रणजीत सिंह का चयन साल 1896 में इंग्लैंड की टीम में हो गया. हालांकि, तब कुछ अंग्रेज उनको अपनी टीम में खिलाने के खिलाफ थे. उन्हीं में से एक थे लॉर्ड हैरिस.
उनका मानना था कि रणजी का जन्म भारत में हुआ है और भारत अंग्रेजों का गुलाम है. इसलिए रणजीत सिंह को अंग्रेजों के साथ नहीं खिलाना चाहिए. हालांकि, रणजी अंग्रेजों की टीम का हिस्सा बनने पहले पहले भारतीय और इकलौते एशियाई बने. हालांकि यह भी कहा जाता है कि रणजीत सिंह भारत में जन्मे थे इसलिए उन्हें इंग्लैंड टीम ने शामिल नहीं किया जा सकता. कभी अंग्रेजों ने उन्हें टीम में रखने से मना किया था, लेकिन उन्होंने अपनी काबिलियत का ऐसा परिचय दिया कि अंग्रेजों का घमंड तोड़ दिया.
क्रिकेट का मिथक तोड़ा
रणजीत सिंह के बारे में कहा जाता था कि वह एक छोटे राज्य के राजकुमार थे पर एक महान खेल के राजा हैं. वह अपनी ही तरह की निराली बल्लेबाजी के लिए मशहूर थे. रणजीत सिंह ने क्रिकेट में बने मिथक भी तोड़े. वह एक ऐसे बल्लेबाज थे, जिनके पास कई स्ट्रोक थे. क्रिकेट को लेग ग्लांस जैसा शॉट उन्होंने ही दिया. कलाइयों का इस्तेमाल कर वह ऑनसाइड में बेहतरीन शॉट खेलते थे पर तब क्रिकेट में बल्लेबाज केवल ऑफसाइड में खेलता था. लेगसाइड में कोई फील्डर नहीं होता था. इसलिए बैट्समैन गलती से भी उस तरफ शॉट खेलता तो माफी मांग लेता था. रणजीत सिंह ने इस परंपरा को तोड़ दिया.
बीमारी में भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रन जड़े
जुलाई 1896 में अंग्रेजों की टीम में शामिल होने के बाद उन्होंने मैनचेस्टर में खेले गए अपने पहले टेस्ट में 62 और नाबाद 154 रनों की दो शानदार पारियां खेलीं. इंग्लैंड भले ही यह मैच हार गया था पर रणजीत सिंह को 1897 के विजडन क्रिकेटर्स ऑफ द ईयर की लिस्ट में शामिल किया गया था.
साल 1897 में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई थी. तब सिडनी में हुए पहले टेस्ट मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे और 175 रनों की पारी खेली थी. इससे इंग्लैंड ने जीत दर्ज की थी. यह और बात है कि रणजीत सिंह इस मैच से पहले काफी बीमार थे और कमजोरी भी महसूस कर रहे थे. इसके बावजूद इंग्लैंड की टीम उनको मैच से बाहर नहीं रखना चाहती थी. इस मैच में पहले दिन उन्होंने 39 रन बनाए. इसके बाद काफी कमजोरी महसूस कर रहे थे. उन्होंने अगले दिन सुबह मैच खेलना शुरू किया, उससे पहले तक डॉक्टर उनकी देखरेख कर रहा था. इसके बावजूद उन्होंने बेहतरीन पारी खेली.
नवानगर के महाराज बने
महाराज रणजीत सिंह ने अपना पहला और आखिरी, दोनों ही मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफ्फोर्ड मैदान पर खेला था. साल 1904 में वह भारत लौट आए. क्रिकेट के प्रति यह उनका प्रेम ही था कि 48 साल की उम्र में भी वह फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने के इच्छुक थे. साल 1906 में उनको कर्नल की उपाधि मिली और साल 1907 में श्री श्री रणजीत सिंह जी विभाजी II के नाम से नवानगर के जाम साहिब (महाराज) बने. 60 साल की उम्र में 2 अप्रैल 1933 को उनका जामनगर में निधन हो गया. रणजीत सिंह के भतीजे दिलीप सिंह ने भी इंग्लैंड की ओर से टेस्ट मैच खेले थे.
अंग्रेजों की शासन काल में महाराजा रणजीत सिंह की याद में रणजी ट्रॉफी की शुरुआत की गई थी, जो आज भी खेली जाती है.
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