
ट्रंप के कारण मुगलों का टैरिफ सिस्टम चर्चा में है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का शोर पूरी दुनिया से होते हुए भारत तक पहुंचने को है. उम्मीद की जा रही है कि दो अप्रैल की रात डोनाल्ड ट्रंप भारत के लिए भी नए टैरिफ की घोषणा करेंगे. टैरिफ का मतलब टैक्स. यह अलग-अलग चीजों पर अलग-अलग हो सकता है. आइए, इसी बहाने जान लेते हैं, मुगलों के दौर में कैसा था टैरिफ सिस्टम.
इतिहास गवाह है कि लगभग 331 साल (1526 से 1857 तक) के मुगल शासन में अकबर और औरंगजेब ही दो ऐसे शासक हुए जिन्होंने सर्वाधिक लगभग 50-50 साल तक राज किया. पूरी दुनिया से उस समय भी व्यापार होता था, जैसे आज हो रहा है. तब भी कर प्रणाली थी और आज भी है. उस समय अलग-अलग शासकों ने अपनी-अपनी कर प्रणाली ईजाद की थी और यह काम आज भी हो रहा है.
जिस तरीके से ट्रंप ने जनवरी में शपथ लेते ही अपने दो पड़ोसी देशों कनाडा और मेक्सिको पर तत्काल नए टैरिफ की घोषणा की और धीरे-धीरे वे अपना दायरा बढ़ाते जा रहे हैं. अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत पर भी नया टैरिफ घोषित करने का वायदा किया था.
मुगल और उनके टैरिफ
भारत शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है. मुगल काल में भी खेती ही आमजन का आधार था. सर्वाधिक टैक्स का बोझ भी किसानों पर ही पड़ता था. यह कर फसल पर भी किसान देता तो जमीन के बदले अलग से कर देता. नगदी के रूप में कर देने की व्यवस्था थी तो उपज से भी कर वसूली होती थी. व्यापारियों से भी टैरिफ की वसूली होती थी. चाहे देशी व्यापारी हों या विदेशी, कर सबको देना होता था. हां, मुगल काल में यूरोप के व्यापारियों के प्रति शासक थोड़े सॉफ्ट थे लेकिन आम भारतीयों के लिए हार्ड.
मुगलों ने लागू किए थे ये टैक्स
- जकात: यह कर इस्लामी कानून के तहत मुस्लिम व्यापारियों से लिया जाता था.
- खराज: यह कर भूमि के लिए लिया जाता था लेकिन गैर-मुस्लिम किसानों से.
- जज़िया: गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला व्यक्तिगत कर. आज की भाषा में आयकर कह सकते हैं.
- मनसबदारी: राज्य के अफसर यह कर वसूलते थे. इसी से सेनापतियों एवं शासकीय अफसरों का पद निर्धारित होता था. उस जमाने में सभी अफसरों की मनसब शासक की ओर से तय की जाती थी.
- आबवाब: यह कर कृषि, व्यापार, और अन्य व्यापारिक गतिविधियों पर अतिरिक्त लगाने की व्यवस्था थी.
- अकबरी भूमि कर प्रणाली: इसे जब्त, गल्ला बख्शी नशक भी कहा जाता था. यह कर मूलतः भूमि पर केंद्रित थी.
- शुल्क एवं सीमा कर: देशी-विदेशी व्यापारियों से वस्तुओं के आयात-निर्यात पर वसूला जाने वाला कर.

मुगलों के दौर में सबसे ज्यादा शोषण और नुकसानगरीब किसान और मजदूरों का हुआ.
कैसी थी भू-राजस्व प्रणाली?
यह कर उपज पर लगता था. भूमि दो श्रेणियों में विभाजित थी. एक-पोलाज और दो-परौती. इस श्रेणी में एक तिहाई कर के रूप में देना होता था. छछर और बंजर भूमि से भी ऊपज के मुताबिक कर वसूलने की व्यवस्था थी. इसे लगान कहा जाता था. दूरस्थ एवं पिछड़े इलाकों से अनाज या उपज के रूप में भी कर वसूलने की परंपरा थी.
तीन हिस्सों में बंटी हुई थी पूरी भूमि
मुगल काल में तीन हिस्सों में पूरे राज्य की भूमि का बंटवारा था. इसे क्रमशः खालसा, जागीर तथा सयूरगल भूमि के रूप में पहचाना जाता था. खालसा भूमि प्रत्यक्ष रूप से बादशाह की होती. इससे होने वाली आय सीधे राजकोष में जमा की जाती. लगभग 20 फीसदी भूमि खालसा के रूप में चिह्नित थी. जागीर भूमि राज्य के प्रमुख अफसरों को वेतन के रूप में दी जाती थी. सयूरगल भूमि प्रायः धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को दी जाती थी. यह अनुत्पादक ही होती थी.

मुगलों के दौर में आयात-निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में 3.5 फीसदी राजस्व की वसूली का नियम था.
मुगल काल में आयात-निर्यात
इतिहास गवाह है कि मुगल काल में भी भारत से आयात-निर्यात ठीक-ठाक था. ऐसे में कर वसूली भी ठीक थी. उस समय फ्रांस से ऊनी कपड़े, इटली एवं फार्स से रेशमी वस्त्र, फरस से कालीन, मध्य एशिया एवं अरब से अच्छी नस्ल के घोड़े, चीन से कच्चा रेशम, सोना एवं चांदी का आयात होता था. भारत से प्रमुख रूप से सूती कपड़े, नील, अफीम, मसाले, चीनी, काली मिर्च, नमक आदि का निर्यात होता था. उस समय आयात-निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में 3.5 फीसदी राजस्व की वसूली का नियम था.
किसे मिलता था फायदा?
कहने की जरूरत नहीं है कि सभी प्रकार के कर का सर्वाधिक लाभ शासकों को होता था. केन्द्रीय खजाने में वृद्धि के इरादे से यह कर लगाए जाते थे. राजकोष से सेना, स्थानीय प्रशासन एवं इंफ्रा पर खर्च करने की व्यवस्था थी. मुगल शासकों के करीबी जमींदारों, विदेशों व्यापारियों को भी इसका किसी न किसी रूप में फायदा मिलता था.
बड़े जमींदार एवं मनसब दार भी किसानों से कर वसूली करते थे और अपना प्रभाव भी बढ़ाते थे. विदेशी खास तौर से यूरोप के व्यापारियों को विभिन्न तरीकों से कर में रियायत मिल जाती थी. इन्हें कुछ खास तरह की छूट भी देने की व्यवस्था थी. इस वजह से उन्हें दोहरा फायदा मिलता था.
किसे होता था नुकसान?
मुगल शासन काल में सर्वाधिक नुकसान, शोषण का शिकार होता था गरीब किसान, मजदूर. भांति-भांति के कर की वजह से इस वर्ग का खूब शोषण हुआ. कई बार विद्रोह भी हुआ लेकिन आवाज दबा दी गई. सीमा शुल्क एवं अन्य करों के कारण स्थानीय व्यापारियों के लिए व्यापार करना महंगा होता गया जिसका फायदा विदेशी व्यापारियों को हुआ. हिंदुओं एवं अन्य गैर हिंदुओं पर जज़िया कर का अतिरिक्त बोझ भी उन्हें अंदर तक झकझोर देता, तोड़ देता. इतिहास गवाह है कि लोगों ने भूख से तड़पते हुए भी कर दिया. न देने पर उन पर मुगल शासक के अफसरों ने भरपूर अत्याचार किए.
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