मुगलों के दौर में हज कैसे जाते थे यात्री, बादशाहों का सऊदी में कितना रुतबा था? वीजा बैन से शुरू हुई चर्चा

मुगलों के दौर में हज कैसे जाते थे यात्री, बादशाहों का सऊदी में कितना रुतबा था? वीजा बैन से शुरू हुई चर्चा

मुगलों के दौर में भी हज के लिए जाना आसान नहीं था. फोटो: Pixabay

सऊदी अरब की सरकार ने भारत समेत 14 देशों के लोगों की यात्रा पर कुछ खास तरह के वीजा को निलंबित करते हुए प्रतिबंध लगा दिया है. यह प्रतिबंध हज यात्रा के दौरान अत्यधिक भीड़भाड़ के चलते लगाया गया है. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि यह प्रतिबंध मध्य जून तक रहेगा, जब तक हज यात्रा समाप्त नहीं हो जाती. सोचिए आज जब यह स्थिति है तो मुगलों के शासनकाल में कैसा माहौल रहा होगा?

आइए जान लेते हैं कि मुगलों के शासनकाल में लोग हज के लिए जाते थे? कौन सा साधन अपनाते थे और किस मुगल शहजादी ने शुरू की परंपरा? सऊदी में मुगलों का कितना रुतबा था?

कारवां के साथ जमीन या जल मार्ग से जाते थे यात्री

मुगलों के शासनकाल से लेकर 18वीं शताब्दी तक भारत से हज यात्रा पर मक्का जाने वाले लोगों के पास दो विकल्प होते थे. एक तो था सड़क मार्ग से कारवां के साथ यात्रा करना या फिर पानी के जहाजों से जाना. सड़क मार्ग से जाना लंबा, दुश्कर और खतरनाक था, क्योंकि रास्ते में दुश्मनों का इलाका भी पड़ता था. ऐसे में भारतीय हज यात्री आमतौर पर लाल सागर होकर पानी के जहाज से फारस की खाड़ी से जाते थे.

हालांकि, 16वीं शताब्दी में हिंद महासागर में पुर्तगालियों के कठोर नियंत्रण के कारण लाल सागर होकर जाना समस्याजनक हो गया था. भारत से लाल सागर होकर जाने वाले जहाजों को पुर्तगाली पास लेना पड़ता था. यह एक समय में इतना दुश्वार हो गया था कि मुगल दरबार में धार्मिक विद्वानों ने मक्का की यात्रा को असंभव बता दिया था.

Hajj Yatra In Mughal Era

भारत से जहाजों से हज पर जाने वालों के लिए जेद्दाह की प्रमुख बंदरगाह था.

अकबर ने जहाजों और फ्री यात्रा की व्यवस्था की

हालांकि, मुगल शासक हज को प्राथमिकता देते थे और वे बहुत से जहाज इसके लिए भेजते थे. अकबर पहला ऐसा मुगल शासक था, जिसने शाही खर्च पर हज यात्रा की व्यवस्था की और हज यात्रियों को सब्सिडी दी. उसने मक्का में हाजियों के लिए एक आश्रय स्थल भी बनवाया था. साल 1570 ईस्वी में अकबर ने एक दरबारी को मीर हज नियुक्त किया. साथ ही अपने प्रमुख दरबारी अब्दुर रहीम खान-ए-खाना को आदेश दिया था कि उसके तीन जहाजों रहीमी, करीमी और सलारी को जेद्दाह तक की निशुल्क यात्रा के लिए तैनात किया जाए.

भारत से जहाजों से हज पर जाने वालों के लिए जेद्दाह की प्रमुख बंदरगाह था. यहां गुजरात के सूरत में स्थित प्राचीन बंदरगाह भारतीय हज यात्रियों की रवानगी का प्रमुख बंदरगाह था, जिसके कारण इसे बाब-उल-मक्का भी कहा जाता था. हज यात्रियों को मदद की व्यवस्था जहांगीर और शाहजहां के समय में भी कम-ओ-बेस चलती रही. शाहजहां तो मक्का को नियमित दान भी भेजता था और हज यात्रियों के लिए मीर हज की भी नियुक्ति की थी.

औरंगजेब हर साल भेजता था दो शाही शिप

मुगल शासकों में सबसे कट्टर माना जाने वाला औरंगजेब हर साल अपने दो शाही जहाजों को सैकड़ों हज यात्रियों को ले जाने के लिए भेजता था. औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसा ने भी हज यात्रा को सपोर्ट किया था. यही नहीं उसने 1676 ईस्वी में स्कॉलर सैफी बिन वली अल-कांज़वी की यात्रा को भी प्रायोजित किया था.

सजा देने के लिए भी होता था हज का इस्तेमाल

अरब न्यूज की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मुगलों के शासनकाल में हज यात्रा पर लोगों को भेजने के अलग-अलग कारण होते थे. इनमें धार्मिक यात्रा, धार्मिक अध्ययन, अच्छी सेवाओं के लिए पुरस्कार के साथ ही सजा के रूप में भी हज पर भेजा जाता था. शाही दरबार के सामने चुनौती या विद्रोही बनकर उभरने वाले लोगों को राजनीतिक निर्वासन के तहत भी हज पर भेज दिया जाता था.

हुमायूं ने अपने भाई को अंधा कर 1553 में हज पर भेज दिया था. अपने पालक और प्रमुख सलाहकार बैरम खान से नाराज होने पर अकबर ने उसे भी हज पर भेज दिया था. जहांगीर ने अपने फारसी चिकित्सक हकीम साद्रा को सही से इलाज न करने पर मक्का भेजा था. औरंगजेब ने काजी उल-कुज्जत को अपने पद से इस्तीफा देकर हज पर जाने का आदेश दिया था.

Gul Badan Begum

हज पर जाने वाली पहली मुगल शाही महिला बाबर की बेटी और अकबर की बुआ गुलबदन बेगम थीं.

गुलबदन बेगम कई साल तक मक्का में रहीं

सबसे खास बात तो यह है कि इतने सारे संसाधन होने के बावजूद कभी किसी मुगल या किसी अन्य मुस्लिम शासक ने हज की यात्रा नहीं की. मुगल शासनकाल में औरतों के हज पर जाने का उदाहरण जरूर मिलता है. अरब न्यूज के अनुसार मुगल शासन में सबसे पहले हज करने वाली मुगल महिला बेगा बेगम या हाजी बेगम थी. वह बाद में हुमायूं की पत्नी बनीं.

हालांकि, भारतीय इतिहासकारों के अनुसार, हज पर जाने वाली पहली मुगल शाही महिला बाबर की बेटी और अकबर की बुआ गुलबदन बेगम थीं. साल 1576 में वह अकबर की एक पत्नी सलीमा सुल्तान और 40 अन्य महिलाओं के साथ हज पर गई थीं. वह 1582 ईस्वी तक मक्का में रहीं और चार बार हज किया और कई बार उमरा.

सऊदी अरब में नहीं था मुगलों का प्रत्यक्ष प्रभाव

जहां तक सऊदी अरब में मुगल शासकों के रुतबे की बात है तो वहां उनका कोई खास रुतबा नहीं था. मुगल साम्राज्य भारत में था और सऊदी अरब तत्कालीन अरब प्रायद्वीप का हिस्सा था. ऐसे में मुगल शासकों का वहां कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं था. इसका बड़ा कारण यह था कि भारत में 16वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य स्थापित हुआ और समय के साथ इसका विस्तार हुआ था. वहीं, सऊदी अरब का आधुनिक स्वरूप 20वीं शताब्दी में सामने आया था, जब सऊदी अरब को नासिर अल-अब्दुल्ला ने एक साथ लाने में सफलता हासिल की थी. ऐसे में मुगलों का सऊदी अरब के साथ किसी तरह का राजनीतिक या कूटनीतिक संबंध भी नहीं था.

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