देश में अब आयेगा मुस्लिमों की नसबंदी का कानून? गृहमंत्री अमित शाह से…

Will the law for sterilization of Muslims come in the country now? Home Minister Amit Shah...Will the law for sterilization of Muslims come in the country now? Home Minister Amit Shah...

नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर एक मौलाना का वीडियो शेयर हो रहा है, जिसमें वो कह रहा है कि जिस दिन हम मुसलमान 80 करोड़ हो जाएंगे, उस दिन से वो आवाज नहीं उठा पाएंगे। मौलाना साजिद रशीदी कह रहा है कि मुसलमानों को हिंदुओं की तरह हम दो हमारे दो का कॉन्सेप्ट नहीं अपनाना चाहिए। उन्हें आबादी बढ़ाना चाहिए।

मौलाना का ये बयान जो भी है, मगर यह जानते हैं कि क्या वाकई में भारत में एक दिन हिंदुओं से ज्यादा मुसलमानों की आबादी हो जाएगी? सोशल मीडिया पर लोग केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से पॉपुलेशन कंट्रोल बिल लाने की डिमांड क्यों कर रहे हैं? यहां तक कह रहे हैं कि आपातकाल के दौरान जिस तरह का नसबंदी प्रोग्राम चलाया गया था, वैसा ही नसबंदी कार्यक्रम मुसलमानों पर भी चलाया जाए। क्या ऐसा संभव है इसे समझते हैं।

क्या भारत में फिर चल सकता है सख्त नसबंदी प्रोग्राम
प्राजक्ता आर गुप्ते की किताब India: “The Emergency” and the Politics of Mass Sterilization में कहा गया है कि भारत में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। ये एक बड़ी चिंता का विषय है, खासकर पिछले 50 सालों से। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने जून 2017 में बताया कि भारत की आबादी 2050 तक 1.5 अरब हो जाएगी। जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए भारत 1951 से ही नसबंदी का तरीका अपना रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2011 में दुनिया भर में जितनी महिलाओं की नसबंदी हुई, उसमें से 37% अकेले भारत में हुई थी।

इंदिरा गांधी की तरह नसबंदी प्रोग्राम की भी क्यों कर रहे हैं बात
नसबंदी से फायदा तो हुआ है। जैसे कि प्रजनन दर (fertility rates) 1990 के दशक में 3.4 थी, जो 2016 में घटकर 2.2 हो गई. लेकिन, इसके साथ कुछ विवाद भी जुड़े हुए हैं। 1970 के दशक में, नसबंदी का मुद्दा भारत की एक बड़ी राजनीतिक समस्या में फंस गया। इसे ‘इमरजेंसी’ कहा गया। ये 21 महीने का समय था, जिसे 1947 के बाद भारतीय इतिहास का सबसे बुरा दौर माना जाता है। किताब में कहा गया है कि संजय गांधी की अगुवाई में इमरजेंसी के दौरान नसबंदी का मुद्दा राजनीतिक बन गया। कैसे इस मुद्दे को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया। सोशल मीडिया पर लोग इसी सख्त प्रोग्राम की वकालत कर रहे हैं।

क्या वाकई में हिंदुओं की आबादी घटी, मुस्लिमों की बढ़ी
बीते साल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी घट गई। वहीं मुस्लिमों की आबादी में 43.15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। हिंदुओं की आबादी हिंदू बहुल नेपाल में भी घटी है। परिषद ने ये आंकड़े 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव के अध्ययन के बाद जारी किए हैं। इन देशों में बहुसंख्यक उन्हें माना गया है, जिनकी आबादी 75 फीसदी से अधिक है। वहीं, अमेरिका की शोध संस्था प्यू रिसर्च के 2020 के अनुमान के मुताबिक भारत में मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। पहले नंबर पर इंडोनेशिया और तीसरे पर पाकिस्तान है।

तो क्या पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसा हो जाएगा भारत
एक अनुमान के अनुसार, 2024 में भारत की कुल तकरीबन 147 करोड़ की आबादी में मुस्लिमों की जनसंख्या करीब 20 करोड़ है। वहीं, 1947 में आजादी के वक्त करीब 10 करोड़ मुस्लिम भारत में थे। बंटवारे के बाद इसमें से करीब 6.5 करोड़ मुसलमान पाकिस्तान चले गए, जबकि करीब 3.5 करोड़ मुस्लिम भारत ही रह गए। सोशल मीडिया पर लोग पॉपुलेशन कंट्रोल बिल लाने की वकालत कर रहे हैं और कह रहे हैं कि अमित शाह इस तरह का बिल लेकर आएं, जिसमें सभी के लिए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर रोक लगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत भी पाकिस्तान-बांग्लादेश की तरह ही खस्ताहाल हो जाएगा।

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