विधेयक रोकने पर कहां चूके तमिलनाडु गवर्नर, सुप्रीम कोर्ट ने किस पावर का इस्तेमाल किया? जानें कब-कब हुआ विवाद

विधेयक रोकने पर कहां चूके तमिलनाडु गवर्नर, सुप्रीम कोर्ट ने किस पावर का इस्तेमाल किया? जानें कब-कब हुआ विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल आरएन रवि की ओर से रोके गए 10 विधेयक पास कराए और इसे संविधान का उल्‍लंघन बताया.

देश की सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि पर तीखी टिप्पणियां की हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से रोके गए 10 विधेयक न केवल पास कर दिए बल्कि यह भी कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है. अवैध है. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से विधान सभा से पास विधेयक अनिश्चित काल के लिए नहीं रोके जा सकते.सुप्रीम कोर्ट ने इन विधेयकों को पास करने को अपने विशेष अधिकार का प्रयोग किया. ये सभी विधेयक राज्य सरकार ने पास करके भेजे थे लेकिन राज्यपाल ने इसे मनमाने ढंग से रोककर रखा था. इस मसले को लेकर राज्य की एमके स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर मदद की गुहार लगाई थी.

राष्ट्रपति ने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में आरएन रवि को साल 2021 में तैनात किया था. अपनी तैनाती के बाद से लेकर अब तक अनेक मौकों पर राज्यपाल और राज्य सरकार आमने-सामने आए. लगभग हर बार राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठे. लगातार एक के बाद एक, विवादित फैसले लेने से नहीं चूक रहे हैं. संभवतः उसी का नतीजा है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के खिलाफ न केवल तीखी टिप्पणियां कीं बल्कि रोके गए सभी विधेयक भी अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए पास कर दिए.

सुप्रीम कोर्ट को क्यों पास कराए विधेयक?

सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 में असाधारण शक्तियां मिली हुई हैं, जिसका इस्तेमाल मंगलवार को करते हुए राज्यपाल की ओर से रोके गए सभी विधेयक पास कर दिए. रवि पहले राज्यपाल नहीं हैं, जो विवादों में फंसे हैं और न ही ऐसे पहले गवर्नर हैं जिनके खिलाफ अदालत ने टिप्पणी की है. रवि समेत पंजाब और महाराष्ट्र के गवर्नर के खिलाफ भी सर्वोच्च अदालत ने पहले भी तीखी टिप्पणियां की हैं.

नियम कहता है कि राज्यपाल किसी भी दल के सदस्य नहीं हैं. वे राज्य सरकार की मदद के लिए हैं. पर, सर्वविदित है कि इस समय केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है और गवर्नर के पदों पर तैनात सभी की तैनाती राष्ट्रपति की ओर से की गई है. ऐसे में कई बार अनेक राज्यपाल विवादित फैसले लेकर राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और खुद की फजीहत कराने से नहीं चूक रहे हैं. ऐसे में जरूरी यह है कि कानूनी स्थिति जान ली जाए. राज्यपालों की भूमिका को लेकर आखिर क्या कहता है भारतीय संविधान?

Cm Stalin

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फाइल फोटो)

क्या कहता है भारतीय संविधान?

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे कहते हैं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 इस मामले में स्थिति को स्पष्ट करता है. कानून कहता है कि राज्य विधानमंडल की ओर से पास विधेयक या विधेयकों पर राज्यपाल के पास कुछ तय शक्तियां हैं. मतलब साफ है कि वे मनमानी नहीं कर सकते. उन्हें नियम के दायरे में रहकर ही फैसला लेने का अधिकार है. राज्यपाल या तो विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, अगर उन्हें किसी तरह की आपत्ति है तो एक बार राज्य सरकार को लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति के सम्मुख पेश कर सकते हैं.

अश्विनी दुबे के मुताबिक जब कोई विधेयक राज्य सरकार विधान सभा से पास करती है तो उसे स्वीकृति के लिए राज्यपाल के सम्मुख पेश करने का प्रावधान है. जिन राज्यों में विधान परिषद हैं वहां विधान सभा एवं विधान परिषद, मतलब दोनों सदनों से पास कराने के बाद राज्यपाल के सम्मुख विधेयक पेश किये जाने का नियम है.

  • भारतीय संविधान गवर्नर को अनुच्छेद 200 के तहत सीमित विकल्प हैं.
  • एक-राज्यपाल विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं.
  • दो-राज्यपाल विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर सकते हैं.
  • तीन-राज्यपाल को ऐसा लगे कि विधेयक उच्च न्यायालय की शक्तियों को प्रभावित कर रहा है तो वे उसे राष्ट्रपति के सम्मुख पेश कर सकते हैं.

चार-एक सूरत यह भी बनती है कि यदि धन विधेयक नहीं है, तो राज्यपाल इसे अपनी सिफारिश के साथ राज्य सरकार को लौटा सकते हैं. पर, यहां एक विशेष अधिकार राज्य सरकार के पास है. वह यह कि अगर राज्य सरकार ने दोबारा उसी विधेयक को सदन या सदनों से पास करवाकर गवर्नर के पास दोबारा भेजती है तो उन्हें इसे मंजूरी देना होगा.

Rn Ravi

राज्यपाल आरएन रवि

कहां पर चूके राज्यपाल?

तमिलनाडु के गवर्नर से यहीं चूक हो गई. वे जानबूझकर लंबे समय तक दर्जन भर विधेयक रोक कर रखे रहे. मतलब न मंजूर किया, न ही खारिज किया. हां, कंट्रोवर्सी बढ़ते देख दो विधेयक राष्ट्रपति को जरूर भेज दिए. बस इसी वजह से उनकी किरकिरी हुई. एडवोकेट कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल “absolute veto” या “pocket veto” नहीं अपना सकते। यानी बिना हस्ताक्षर किए विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए रोक कर नहीं रख सकते. यह अवैध है. पूरी तरह से गैरकानूनी है और भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

कब-कब सरकार और तमिलनाडु गवर्नर के बीच हुआ विवाद

खास बात यह है कि तमिलनाडु के राज्यपाल पहली बार विवादों में नहीं फंसे हैं. वे लगातार कुछ न कुछ ऐसा करते आ रहे हैं कि विवाद खुद-ब-खुद उनके पास पहुंच जाता है. आइए ऐसे ही कुछ मामलों पर एक नजर डालते हैं.

गढ़ डाली अपनी नई परिभाषा

दो वर्ष पहले अप्रैल महीने में ही तमिलनाडु के गवर्नर ने सिविल सेवा के युवा अफसरों से कहा कि जब राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को रोकते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि विधेयक का कोई वजूद नहीं है. उन्होंने अपने समर्थन में सुप्रीम कोर्ट का भी गलत तरीके से उल्लेख किया. बोले-सुप्रीम कोर्ट ने विधेयक के सहमति से रोकने को विधेयक विफल होने के रूप में परिभाषित किया है. उन्होंने सिविल सेवा के अभ्यर्थियों से कहा था-यह अस्वीकृति शब्द का शालीन प्रयोग है. उनके इस बयान के बाद तमिलनाडु समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में एक नई बहस शुरू हो गई.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने इस विवाद के बाद कहा था कि जब गवर्नर बिना किसी कारण विधेयक रोकते हैं तो इसका मतलब यह है कि संसदीय लोकतंत्र मृत है. इसी साल यानी नवंबर 2023 में ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पंजाब राज्यपाल के मामले में कहा था कि राज्यपाल द्वारा विधेयक अस्वीकार करना, विधेयक की मृत्यु नहीं है। एक राज्य विधानसभा द्वारा प्रस्तावित कानून, केवल राज्यपाल की सहमति न मिलने से समाप्त नहीं होता.

मेडिकल सीटों पर प्रवेश को लेकर भी कठघरे में आए थे राज्यपाल रवि

किस्सा फरवरी 2022 का है. तमिलनाडु विधान सभा ने “स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश विधेयक 2021” पास कर राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा. उन्होंने उसे विधान सभा अध्यक्ष को लौटा दिया. विधेयक मंजूर होता तो तमिलनाडु में NEET के स्कोर पर मेडिकल सीटों पर प्रवेश नहीं होता. राज्य सरकार ने इस विधेयक को न्यायमूर्ति एके राजन की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया था. गवर्नर ने सार्वजनिक रूप से कहा कि यह रिपोर्ट एकतरफा दृष्टिकोण रखती है. विधेयक स्टूडेंट्स के हित में कतई नहीं है. राज्य सरकार ने उसी विधेयक को दोबारा सदन से पास करवा कर भेज दिया. तमाम फजीहत के बाद गवर्नर ने विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा, जहां से उसे मंजूरी नहीं मिली. यह काम वे पहले भी कर सकते थे क्योंकि NEET का आयोजन भारत सरकार करती है, न कि कोई राज्य सरकार. अगस्त 2023 में गवर्नर ने फिर इस मुद्दे पर विवादित बयान देकर फंस गए थे.

सेंथिल बालाजी की बर्खास्तगी के बाद अचानक लिया यू-टर्न

29 जून, 2023 का वाकया है. राज्यपाल ने राज्य में मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को बर्खास्त कर दिया. जब यह फैसला हुआ तो उसके थोड़ी देर बाद ईडी ने सेंथिल को गिरफ्तार कर लिया. राजभवन का तर्क था कि सेंथिल के मंत्री पद पर बने रहने से निष्पक्ष जांच में बाधा आ सकती थी. उधर, मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने सेंथिल बालाजी को बिना विभाग के मंत्री के रूप में बरकरार रखा। कानून मंत्री एस. रेगुपथी ने कहा कि मंत्री को बनाए रखना या हटाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है. रात में गवर्नर ने अपना फैसला वापस ले लिया और सीएम को गृह मंत्री के सुझाव का हवाला देते हुए लिखा कि इस मामले में अटार्नी जनरल की राय ले ली जाए और मैं ऐसा करने जा रहा हूँ. लगभग दो साल होने को है-अटार्नी जनरल की राय सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई.

मंत्रिमंडल में शामिल करने से किया इनकार

पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री रहे पोन्मुडी की सजा को निलंबित कर दी. तब सीएम स्टालिन ने उन्हें फिर से मंत्री बनाए जाने की सिफारिश की लेकिन राज्यपाल ने मना कर दिया. आरएन रवि ने मुख्यमंत्री को लिखा कि चूंकि पोन्मुडी भ्रष्टाचार के आरोपी हैं, ऐसे में उन्हें मंत्री बनाना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ होगा. बाद में, भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यपाल भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हमें राज्यपाल के आचरण को लेकर गंभीर चिंता है. जब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पोन्मुडी की सजा को स्थगित कर दिया था, तब राज्यपाल को यह कहने का कोई अधिकार नहीं कि निलंबन का आदेश सजा को समाप्त नहीं करता. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद राज्यपाल ने पोन्मुडी को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.

NIA जांच के बाद हुई गवर्नर की किरकिरी

चेन्नई में 25 अक्तूबर 2023 को राजभवन के मुख्य द्वार पर पेट्रोल बम से हमला हुआ. हमलावर को पुलिस ने पकड़ लिया. पुलिस ने खुलासा किया कि हमलावर विनोद एक हिस्ट्रीशीटर है. राजभवन ने पुलिस के बयान से इतर एक नई कहानी बताई. जिसके मुताबिक हमला गंभीर था. इसमें एक से ज्यादा हमलावर शामिल थे. यहां दूसरा बम भी फेंका गया. राजभवन ने यह भी कहा कि पुलिस ने मामले को बहुत हल्के में निपटा दिया. आरोपी से गहन पूछताछ तक नहीं की. बाद में इस प्रकरण की जांच एनआईए ने की और उसने भी पाया कि इस हमले में केवल विनोद नाम का अपराधी शामिल था. यहाँ एक बार फिर राजभवन की किरकिरी हुई.

यह भी पढ़ें: एक चूहा कैसे बना सुपरहीरो? बारूदी सुरंग के बीच बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *