कैसे बना आनंदपुर धाम, जहां अद्वैतानंद महाराज का समाधि स्थल? आज बैसाखी मनाने जाएंगे PM मोदी

कैसे बना आनंदपुर धाम, जहां अद्वैतानंद महाराज का समाधि स्थल? आज बैसाखी मनाने जाएंगे PM मोदी

आनंदपुर धाम परमहंस अद्वैतानंद महाराज का समाधि स्थल और अद्वैत मठ का मुख्य आश्रम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (11 अप्रैल 2025) को मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थापित आनंदपुर धाम में वैशाखी मनाएंगे. आनंदपुर धाम परमहंस अद्वैतानंद महाराज का समाधि स्थल और अद्वैत मठ का मुख्य आश्रम है. यहां पर मठ के पंचम पादशाही के मंदिर स्थापित हैं. प्रधानमंत्री के दौरे से आनंदपुर धाम एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. आइए जान लेते हैं कि कौन थे अद्वैतानन्द महाराज और आनंदपुर धाम क्यों खास है.

परमहंस अद्वैतानंद महाराज का जन्म बिहार में छपरा के दहियावां में साल 1846 में चैत्र रामनवमी को हुआ था. भगवान श्रीराम के अवतार वाले दिन जन्म होने के कारण उनका नाम राम याद रखा गया था. उनके दादा का नाम पंडित ख्याली राम पाठक था. प्रतिष्ठित ब्राह्मण ख्याली राम पाठक का पेशा पुरोहिताई था. आस-पास के कई संभ्रांत परिवार उनके शिष्यों की सूची में शामिल थे. ख्याली राम पाठक के बेटे संस्कृत के ज्ञाता तुलसी राम पाठक के पुत्र थे राम याद. राम याद की माता जी एक पतिव्रता स्त्री थीं जो घर में तमाम नौकर होने के बावजूद अपने पति का सारा काम खुद करती हैं. हालांकि, विधि के विधान में कुछ और था और राम याद केवल आठ-नौ महीने के थे, तभी माता का निधन हो गया. इससे तुलसी राम पाठक के सामने मासूम के पालन-पोषण की समस्या आ गई.

पिता के यजमान ने किया पालन-पोषण

उनके एक यजमान थे लाला नरहर प्रसाद श्रीवास्तव. लाला नरहर प्रसाद के इकलौते बेटे का कुछ ही दिन पूर्व निधन हो गया था, जो राम याद से छह महीने बड़ा था. इसको देखते हुए तुलसी राम पाठक जी ने लाला दंपति को अपने पुत्र का संरक्षण सौंप दिया. दोनों ने सगे पुत्र से भी ज्यादा वात्सल्य के साथ उनका लालन-पोषण किया. इसके कारण राम याद को अपने माता-पिता की भी याद नहीं आती थी.

वह चार साल के हुए तो लाला देवी प्रसाद ने अरबी और फारसी की शिक्षा दी. साथ ही साथ लाला जी के यहां आने वाले सुशिक्षित और सत्संगी लोगों के बीच उठने-बैठने से राम याद की सामाजिक शिक्षा भी चलती रही और सत्संग का प्रभाव बचपन से ही उन पर पड़ता रहा.

Shri Paramhans Advait Maharaj Ji

परमहंस अद्वैतानंद महाराज का जन्म बिहार में छपरा में हुआ था.

ध्यान लगाकर बैठे और दो मंजिला मकान तक उठ गए

राम याद केवल पांच साल के थे तभी पिता तुलसी राम पाठक का भी निधन हो गया. ऐसे में लाला नरहर प्रसाद उनके लिए सबकुछ थे, जिन्होंने नौ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत कराया. राम याद 14 साल के हुए तो पालक पिता लाला नरहर प्रसाद का भी निधन हो गया. बताया जाता है कि एक बार राम याद ने किसी योगी से सुना कि मुख में गुटका रखकर भी आकाश में उड़ सकते हैं. तब आठ-नौ साल के राम याद पालथी लगाकर ध्यान में बैठ गए और मन में उड़ने का संकल्प लेने लगे. नतीजा रहा कि वह आसन समेत जमीन से दोमंजिला मकान की ऊंचाई तक उठ गए. यह लोग देखकर चकित रह गए.

संन्यास के लिए गुरु से किया शास्त्रार्थ

राम याद के पिता को ब्रह्मविद्या का उपदेश केदारघाट काशी के श्री परमहंस जी से मिला था. परमहंस जी लाला नरहर के घर भी आते थे. उनको भी सबसे पहले ब्रह्मविद्या का ज्ञान उन्हीं से मिला. लाला नरहर प्रसाद के निधन के बाद राम याद ने परमहंस जी से संन्यास की इच्छा जताई. इस पर दोनों में चर्चा होने लगी और संन्यास और गृहस्थ आश्रम की श्रेष्ठा पर काफी देर बात हुई. अंत में परमहंस जी ने कहा कि माता (पालन-पोषण करने वाली मां) के शरीर त्यागने के बाद साधु हो जाना.

Anandpur Dham Facts

साल 1930 के आसपास दूसरे गुरु स्वरूप आनंद महाराज ईसागढ़ पहुंचे और आनंदपुर धाम आश्रम स्थापित किया.

राम याद से बने स्वामी अद्वैतानन्द महाराज

आगे चलकर राम याद ही परमहंस अद्वैत मत के संस्थापक स्वामी अद्वैतानन्द जी बने और परमहंस अद्वैत मत परंपरा शुरू हुई. इसमें अब तक छह गुरु हुए हैं. पहले गुरु स्वामी अद्वैतानन्द साल 1919 तक रहे. बताया जाता है कि एक बार आगरा में स्वामी अद्वैतानन्द का आगरा में प्रवचन हो रहा था. इसमें मध्य प्रदेश के ईसागढ़ से सेठ पन्नालाल मोदी भी शामिल हुए थे.

उन्होंने अद्वैतानन्द जी को ईसागढ़ आने का निमंत्रण दिया तो उन्होंने बाद में आने के लिए आश्वस्त किया. हालांकि, साल 1930 के आसपास दूसरे गुरु स्वरूप आनंद महाराज ईसागढ़ पहुंचे और आनंदपुर धाम आश्रम स्थापित किया. साल 1954 में आनंदपुर धाम ट्रस्ट की स्थापना की गई.

इतना विशाल है आनंदपुर धाम आश्रम

मीडिया से बातचीत करते हुए आनंदपुर धाम के महात्मा सोनू महाराज ने बताया कि आश्रम 1500 बीघे में फैला है. इसमें पांचों गुरुओं के मंदिर हैं. ये मंदिर चारों ओर से तालाबों से जुड़े हैं. खेती और अन्य कामों के लिए आश्रम के पास और भी जमीनें हैं. इस आश्रम में साधु-साध्वी मिलाकर लगभग 1500 लोग रहते हैं. यहां पर वैशाखी, व्यास पूजा और दीपावली मुख्य रूप से मनाए जाने वाले त्योहार हैं. इस आश्रम में दर्शन के लिए जाने वालों को खास रास्ते से मंदिर ले जाया जाता है. इसके लिए आश्रम प्रबंधन अपने वाहनों का इस्तेमाल करता है. यहां आने वालों की हर गतिविधि पर पूरी नजर रखी जाती है. बाहर से बिना अनुमति किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है और न ही अंदर जाकर कोई मन मुताबिक भ्रमण कर सकता है.

Anandpur Dham Gate Madhya Pradesh

आनंदपुर धाम आश्रम 1500 बीघे में फैला है.

आश्रम के अंदर ही हैं तीन बस अड्डे

मध्य प्रदेश में ईसागढ़ के पास अशोकनगर में स्थित आनंदपुर धाम परमहंस अद्वैतानन्द महाराज का समाधि स्थल माना जाता है. यह अपनी खासियतों के लिए देशभर में जाना जाता है. बताया जाता है कि साल 1930 के करीब जब गुरु स्वरूप आनंद जी महाराज ने आनंदपुर धाम आश्रम स्थापित किया था तब यह एक टपरी के जरिए शुरू हुआ था. आज आश्रम में खुद की फायर ब्रिगेड और तीन प्राइवेट बसअड्डे भी हैं. यहां पर एक बेहद सुदंर गार्डन है. इसके अलावा वाहनों के लिए कार्यशाला और आधुनिक मशीनें, सीसीटीवी सर्विलांस, प्राइवेट सिक्योरिटी, साफ-चौड़ी सड़कें और खूबसूरत पार्क भी इसकी विशेषताओं में शामिल हैं.

स्कूल और हॉस्पिटल का भी होता है संचालन

आनंदपुर धाम ट्रस्ट आश्रम की सभी चल-अचल संपत्तियों की देखरेख करता है. इसके अलावा ट्रस्ट के जरिए स्कूल और अस्पताल भी संचालित किए जाते हैं. फिलहाल आश्रम अशोकनगर जिले में तीन स्कूलों और एक अस्पताल का संचालन करता है. इन स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई निशुल्क है. यूनिफॉर्म और खाना भी फ्री मिलता है. अस्पताल में भी इलाज और दवाओं के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है.

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