जिस गुलाम को बाजार में दो बार बेचा गया वो दिल्ली का बादशाह कैसे बना? जानें कौन था वो खरीदार

जिस गुलाम को बाजार में दो बार बेचा गया वो दिल्ली का बादशाह कैसे बना? जानें कौन था वो खरीदार

इल्तुतमिश का पूरा नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश था और पिता इलाम खां एक आदिवासी कबीले का मुखिया था.

हिन्दुस्तान में मुस्लिम शासन की शुरुआत का श्रेय मोहम्मद गोरी को दिया जाता है, जिसने तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराया और अलग-अलग स्थानों पर अपने गवर्नर नियुक्त किए. उसी के गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में गुलाम वंश का शासन शुरू किया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की पर असल में कुछ इतिहासकार मानते हैं कि दिल्ली सल्तनत की स्थापना का श्रेय इल्तुतमिश को दिया जाना चाहिए. आइए जान लेते हैं कि ऐबक का गुलाम इल्तुतमिश कैसे दिल्ली का बादशाह बना?

इल्तुतमिश का पूरा नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश था. इल्बारी तुर्क इल्तुतमिश का पिता इलाम खां एक आदिवासी कबीले का मुखिया था. इल्तुतमिश देखने में काफी सुन्दर और बुद्धिमान था. इसलिए पिता उससे काफी प्रेम करते थे और प्रेम के कारण उसे घर से निकलने ही नहीं देते थे. इसलिए इल्तुतमिश से उसके अपने ही भाई जलने लगे. एक दिन मौका पर वे इस्तुतमिश को मेला घुमाने के बहाने ले गए और उसे धोखे से गुलामों के व्यापारी को बेच दिया.

इल्तुतमिश को इसके बाद दो बार बेचा गया. अंतत: जलालुद्दीन मुहम्मद नाम का गुलामों का एक व्यापारी उसको बेचने के लिए गजनी ले गया. वहां के शासक मुहम्मद गोरी ने इल्तुतमिश को खरीदने की इच्छा जताई पर मनचाही कीमत नहीं मिलने पर जुलालुद्दीन ने उसको बेचने से मना कर दिया. इस पर गजनी में इल्तुतमिश को बेचने पर गोरी ने प्रतिबंध लगा दिया. इस कारण इल्तुतमिश को दिल्ली ले आया गया. यहां उसे गोरी के गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीद लिया.

गुलाम का गुलाम बना

कुतुबुद्दीन ऐबक ने इल्तुतमिश को खरीदा था, इसलिए वह एक गुलाम का गुलाम था. हालांकि, साल 1206 ईस्वी में खोक्खर के विद्रोहियों के दमन के दौरान कुतुबुद्दीन के साथ इल्तुतमिश भी था. इस लड़ाई के दौरान इल्तुतमिश ने ऐसा साहस और कौशल दिखाया कि उससे प्रभावित होकर मुहम्मद गोरी ने इल्तुतमिश को दासतां से मुक्त कर दिया. वहीं, ऐबक ने इल्तुतमिश के साहस और योग्यता को देखते हुए शुरू में ही उसे अंगरक्षकों का मुखिया (सर-ए-जांदार) नियुक्त कर दिया. फिर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते हुए इल्तुतमिश अमीर-ए-शिकार बना दिया गया, जो राजदरबार में एक अहम पद था और उसका जिम्मा सुल्तान के लिए शिकार की व्यवस्था करना होता था.

ग्वालियर का किलेदार बना

ऐबक ने ग्वालियर पर जीत हासिल की तो इल्तुतमिश को वहां के किले का किलेदार बना दिया. फिर बुलन्दशहर का इक्तेदार नियुक्त किया गया. बाद में इल्तुतमिशन को दिल्ली के सबसे महत्वपूर्ण सूबों में से एक बदायूं के सूबेदार के रूप में नियुक्ति मिली. साथ ही कुतुबुद्दीन ने अपनी एक बेटी का विवाह भी उससे कर दिया. साल 1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हुई तो इल्तुतमिश बदायूं का सूबेदार ही था.

साले को हटाकर सुल्तान बना

ऐबक की मौत के बाद उसके बेटे आराम शाह ने गद्दी संभाली. हालांकि, वह एक सक्षम शासक नहीं था. इसलिए तुर्की सेना और ऐबक के ही सिपहसालारों ने उसका विरोध शुरू कर दिया. दिल्ली में कुतुबुद्दीन के सिपहसालार रहे अमीर अली इस्माइल और तुर्की सरदारों ने इल्तुतमिश की योग्यता को देखते हुए उसे बदायूं से दिल्ली आने का न्योता दिया. इल्तुतमिशन दिल्ली पहुंचा और खुद को सुल्तान घोषित कर दिया. इस तरह दिल्ली में आराम शाह का शासन सिर्फ आठ महीने रहा. साल 1211 में इल्तुतमिश ने अपने साले आराम शाह को युद्ध में हराया और उसका कत्ल कर दिया और पूरी तरह से दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बन गया.

बगदाद के खालीफा से हासिल की पदवी

कुतुबुद्दीन ऐबक गोर (मुहम्मद गोरी मध्य अफगानिस्तान के इसी प्रांत का शासक था) के शासन से नाता तोड़कर हिन्दुस्तान पर अपना आजाद शासन शुरू किया था. उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था. वहीं, इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद की स्वीकृति सीधे बगदाद के अब्बासी खलीफा अल मुस्तनसिर बिल्लाह मन्सूर से हासिल की थी. खलीफा ने उसको हिन्दुस्तान के सुल्तान और नासिर अमिर-उल-मौमनीन की उपाधि दी थी. मिनहाजुद्दीन सिराज ने अपनी रचना कृति तबकाते नासिरी में इसके बारे में लिखा है. इसलिए इल्तुतमिश वास्तव में दिल्ली सल्तनत का पहला कानूनी और प्रभुता संपन्न सुल्तान था. उसने लाहौर की जगह दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था.

गुलामों के जरिए सत्ता पर रखा नियंत्रण

इल्तुतमिश के दिल्ली का सुल्तान बनने के साथ ही मुहम्मद गोरी के समय बनाए गए कुतुबी और मुइज्जी सरदारों ने विद्रोह कर दिया. इस विद्रोह को तो इल्तुतमिश ने दबा दिया पर फिर कभी सरदारों पर भरोसा नहीं किया. इसके चलते सुल्तान इल्तुतमिश ने अपने खरीदे 40 भरोसेमंद गुलामों का एक समूह बनाया और उच्च पद देकर शासन पर उनके जरिए नियंत्रण रखा. पहले मुस्लिम इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने इल्तुतमिश के गुलामों के इस समूह को तुर्कान-ए-चिहालगानी की संज्ञा दी है.

अप्रैल 1236 में हुआ निधन

यह साल 1236 की बात है. इल्तुतमिश बनियान के विजय अभियान पर निकला था पर रास्ते में ही वह बीमार पड़ गया. इसलिए उसको 20 अप्रैल को दिल्ली लौटना पड़ा. 30 अप्रैल 1236 को उसका दिल्ली में ही निधन हो गया. उसको दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब परिसर में दफनाया गया. यहीं पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार का निर्माण शुरू कराया था और अपने निधन के पहले तक उसकी पहली मंजिल ही बनवा पाया था. इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण पूरा कराया था.

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