संघ संस्थापक हेडगेवार RSS को राजनीति से अलग क्यों रखना चाहते थे? पढ़ें किस्से

संघ संस्थापक हेडगेवार RSS को राजनीति से अलग क्यों रखना चाहते थे? पढ़ें किस्से

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने साल 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की नींव रखी.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का आज भारतीय राजनीति में दबदबा है. देश की सत्ता चला रही भारतीय जनता पार्टी के फैसलों में अब आरएसएस की अहम भूमिका रहती है. हालांकि, संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार इसे राजनीति से अलग रखना चाहते थे. उनकी जयंती पर आइए जान लेते हैं इसका कारण.

नागपुर के एक ब्राह्मण परिवार में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को हुआ था. वह केवल 13 साल के थे तभी पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार और मां रेवतीबाई का प्लेग के कारण निधन हो गया. इसके बाद डॉ. हेडगेवार की देखरेख दो बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने की.

नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल से उन्होंने शुरुआती पढ़ाई की. हालांकि, एक दिन स्कूल में वंदे मातरम् गाने पर उनको निकाल दिया गया तो भाइयों ने उनको पढ़ने के लिए पहले यवतमाल और फिर पुणे भेज दिया. मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बीएस मुंज ने उन्हें आगे मेडिकल की पढ़ाई के लिए साल 1910 में कलकत्ता (अब कोलकाता) भेज दिया. डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1915 में वह नागपुर लौटे.

सशस्त्र विद्रोह छोड़ कांग्रेस के साथ किया काम

मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कलकत्ता में रहते हुए अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे संगठनों के जरिए अंग्रेजी शासन का मुकाबला करने के लिए तमाम विधाएं सीखीं. अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण की, जिसके बाद वह रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए. यह भी बताया जाता है कि उन्होंने काकोरी कांड में केशब चक्रवर्ती के बदले नाम से हिस्सा लिया था. इसके बाद वह अंडरग्राउंड हो गए थे.

हालांकि, इसी दौरान डॉ. हेडगेवार को लगा कि भारत में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह आसान नहीं है और उनका इससे मोह भंग हो गया. इसलिए नागपुर लौट कर वह समाज सेवा में लग गए और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर कांग्रेस के लिए काम करने लगे. इसी दौरान वह डॉ. मुंज के और करीब आ गए और जल्द ही उनसे हिन्दू दर्शनशास्त्र में मार्गदर्शन लेने लगे.

सांप्रदायिक दंगों के बाद हिन्दुत्व की ओर बढ़े

देश की आजादी की लड़ाई में हर कोई अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से हिस्सा ले रहा था. कांग्रेस में शामिल होने के बाद डॉ. हेडगेवार ने भी 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. एक साल जेल में भी रहे पर साल 1923 के सांप्रदायिक दंगों के कारण वह पूरी तरह उग्र हिन्दुत्व की ओर बढ़ गए. हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीएस मुंज के अलावा बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर ने उनको प्रभावित किया.

हिन्दू राष्ट्र की कल्पना साकार करने को संघ की स्थापना

फिर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने हिन्दू राष्ट्र की कल्पना की और उसको साकार करने के लिए साल 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नींव रखी. संघ के वह पहले सर संघचालक बने. नागपुर में संघ की शाखा लगने लगी. बाबा साहेब आप्टे, भैय्याजी दाणी, बाला साहेब देवरस और मधुकर राव भागवत आदि संघ के शुरुआती सदस्य बने. इन लोगों को अलग-अलग प्रदेशों के प्रचारक की ​जिम्मेदारी सौंपी गई.

अंग्रेजों की नजरों से बचने के लिए राजनीति से दूरी

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को शुरू से ही सक्रिय राजनीति से दूर ही रखा. अपने संगठन को उन्होंने केवल सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों तक ही सीमित रखा. इसके पीछे उनकी एक सोची-समझी रणनीति भी थी. वह नहीं चाहते थे कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शुरुआत में ही अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में खटकने लगे और उसका विस्तार ही न हो सके. इसीलिए उन्होंने अपने संगठन को सख्ती के साथ राजनीतिक गतिविधियों से अलग रखा.

साल 1930 में महात्मा गांधी ने जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया तो डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं को पत्र लिखा. इसके जरिए सूचित किया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आंदोलन में शामिल नहीं होगा. हालांकि, साथ ही साथ यह भी कहा कि कोई अगर व्यक्तिगत रूप से इस अंदोलन में हिस्सा लेना चाहता है तो उस पर कोई रोक नहीं है. बताया जाता है कि डॉ. हेडगेवार खुद भी निजी तौर पर आंदोलन में शामिल हुए थे.

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