Markandey Mahadev Temple Varanasi : काशी का मार्कंडेय महादेव मंदिर, जहां सिर्फ बेलपत्र चढ़ाने से पूरी हो जाती हैं मनोकामनाएं!

Markandey Mahadev Mandir : मार्कंडेय महादेव मंदिर का महत्व धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक तीनों दृष्टिकोणों से अत्यंत विशिष्ट है. यह मंदिर वाराणसी से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है, और इसकी मान्यता पुराणों, विशेष रूप से मार्कंडेय पुराण और शिव पुराण से जुड़ी हुई है. यह मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है. दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां आते हैं. सावन के महीने और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष रूप से भक्तों की भीड़ उमड़ती है. मंदिर का शांत और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को शांति और सुकून प्रदान करता है.

मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

इस मंदिर से जुड़ी सबसे खास मान्यता यह है कि यहां केवल बेलपत्र चढ़ाने से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. अन्य मंदिरों में फूल, फल, मिठाई आदि चढ़ाने का विधान है, लेकिन मार्कंडेय महादेव मंदिर में बेलपत्र का विशेष महत्व है. माना जाता है कि भगवान शिव को बेलपत्र अत्यंत प्रिय हैं और सच्चे मन से बेलपत्र अर्पित करने वाले भक्तों की हर इच्छा वे अवश्य पूरी करते हैं. यह मंदिर उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं. इसलिए जो दंपति संतान सुख से वंचित होते हैं, वे यहां आकर सच्चे मन से बेलपत्र चढ़ाते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. यहां भगवान शिव मृत्यु को भी जीत चुके हैं, इसलिए उन्हें कालमुक्तेश्वर कहा जाता है. मान्यता है कि इस स्थान पर शिव की पूजा करने और बेलपत्र अर्पण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है, और व्यक्ति को दीर्घायु और सुखी जीवन का वरदान मिलता है.

माना जाता है कि वर्तमान मार्कंडेय महादेव मंदिर उसी स्थान पर बना है जहाँ ऋषि मार्कंडेय ने भगवान शिव की आराधना की थी और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ था। इसलिए, यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. इस मंदिर को भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है.

मार्कंडेय ऋषि की कथा

इस मंदिर का संबंध ऋषि मार्कंडेय की प्रसिद्ध कथा से भी जुड़ा हुआ है. मार्कंडेय ऋषि अल्पायु थे और उनकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में निश्चित थी. अपने माता-पिता के कहने पर उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की. जब यमराज उनके प्राण लेने आए, तो मार्कंडेय ऋषि शिवलिंग से लिपट गए. भगवान शिव उनके भक्ति से प्रसन्न हुए और यमराज को पराजित कर मार्कंडेय को अमरत्व का वरदान दिया. माना जाता है कि यह घटना इसी स्थान पर हुई थी. इसलिए देश-भर से श्रद्धालुगण अपनी मनोकामना लेकर इस प्राचीन मंदिर के दर्शनों के लिए आते हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *