
Jagannath Temple Flag StoryImage Credit source: Getty Images
Jagannath Temple Odisha : जगन्नाथ पुरी मंदिर, ओडिशा के पुरी शहर में स्थित एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है. यह मंदिर भगवान जगन्नाथ जो भगवान विष्णु का एक रूप माने जाते हैं, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है. यह भारत के चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है, जिसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू करवाया था और इसे 13वीं शताब्दी में अनंगभीम देव तृतीय ने पूरा किया था. मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां स्थापित हैं. हर 12 या 19 साल में इन मूर्तियों को नई मूर्तियों से बदल दिया जाता है, जिसे नवकलेवर कहा जाता है. यह मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक बहुत सुंदर उदाहरण है, जिसमें घुमावदार शिखर और जटिल नक्काशी है. मंदिर परिसर एक बड़ी चारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसमें चार मुख्य द्वार हैं सिंहद्वार, हस्तिद्वार, अश्वद्वार और व्याघ्रद्वार.
रथ यात्रा दुनिया भर में प्रसिद्ध
जगन्नाथ पुरी मंदिर वैष्णव भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है. माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ ‘जगत के नाथ’हैं. यहां हर साल आयोजित होने वाली रथ यात्रा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जिसमें तीनों देवताओं को विशाल रथों में बैठाकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है. मंदिर में तैयार किया जाने वाला महाप्रसाद एक अलग विशेष महत्व रखता है, जिसे हजारों भक्तों में वितरित किया जाता है. यह मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी मंदिर रसोई में से एक मानी जाती है. इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य हैं, जैसे कि मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, दिन के किसी भी समय मंदिर की परछाई नहीं दिखाई देती है. इसलिए जगन्नाथ पुरी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का भी प्रतीक है. हर साल लाखों श्रद्धालु इस पवित्र स्थान के दर्शन के लिए आते हैं.
ध्वज बदलने का धार्मिक महत्व
जगन्नाथ पुरी मंदिर में हर दिन ध्वज (झंडा) बदलने की परंपरा एक गहन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है. यह परंपरा लगभग 800 वर्षों से चली आ रही है और इसके पीछे कई मान्यताएं और रहस्य जुड़े हुए हैं. जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित 20 फीट लंबा त्रिकोणीय ध्वज प्रतिदिन बदला जाता है. यह कार्य ‘चोला’ परिवार द्वारा किया जाता है, जो पीढ़ियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. कहा जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ ने एक भक्त को सपने में दर्शन दिए और बताया कि उनका झंडा पुराना और फट गया है. अगले दिन, जब मंदिर के पुजारियों ने देखा तो वास्तव में झंडा वैसा ही था. तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि हर दिन एक नया झंडा फहराया जाएगा. इसलिए, यह कार्य प्रतिदिन श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूरा किया जाता है.
ध्वज का प्रतीकात्मक अर्थ
ध्वज को भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है. यह ध्वज समुद्र से बहने वाली हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो अपने आप में एक रहस्य है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे वायुगतिकीय प्रभाव के कारण माना जाता है, जहां मंदिर की संरचना के कारण हवा की दिशा में परिवर्तन होता है.
ध्वज बदलने की प्रक्रिया
ध्वज बदलने की प्रक्रिया अत्यंत साहसिक और कौशलपूर्ण होती है. सेवादार बिना किसी सुरक्षा उपकरण के 214 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर चढ़ते हैं और पुराने ध्वज को हटाकर नया ध्वज स्थापित करते हैं. यह कार्य रोजाना किया जाता है. ध्वज बदलने की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का भी प्रतीक है. यह परंपरा मंदिर की दिव्यता और उसकी अनंतता को दर्शाती है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.