News Just Abhi, Digital Desk- (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश (UP) के एक संपत्ति विवाद में एक पुराने गोदनामे को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह गोदनामा जानबूझकर बेटियों को संपत्ति में हिस्सेदारी से वंचित करने के लिए बनाया गया था। मामला भुनेश्वर सिंह की संपत्ति से संबंधित है, जिनकी दो बेटियां, शिव कुमारी देवी और हरमुनिया हैं। अशोक कुमार ने दावा किया कि उन्हें 1967 में गोद लिया गया था, और उसी आधार पर उन्होंने संपत्ति का हक जताया। उन्होंने गोदनामा और एक फोटो अदालत में प्रस्तुत किया था, लेकिन अदालत ने इसे मान्य नहीं किया।
पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट से झटका-
लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) और अब सुप्रीम कोर्ट (supreme court order) ने इस गोदनामे को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि, ‘हमने पूरी सुनवाई और दस्तावेजों को ध्यान से देखा और यह साफ है कि यह गोदनामा सिर्फ बेटियों को उनके हक से वंचित करने के लिए तैयार किया गया था।’
गोदनामे के लिए पत्नी की सहमति जरूरी-
गोद लेने की प्रक्रिया में पत्नी की सहमति अनिवार्य होती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। गोद लेने की तारीख थी 9 अगस्त 1967, लेकिन गोदनामे में पत्नी की न तो सहमति थी, न ही हस्ताक्षर, और न ही वह गोद लेने की रस्म में शामिल थीं। हाईकोर्ट ने भी माना कि गोद लेने की प्रक्रिया में जरूरी कानूनी नियमों का पालन नहीं हुआ। अदालत ने यह भी कहा- एक गवाह ने भी गोद लेने की रस्म की तस्वीरों में मां को पहचानने से इनकार किया। इससे साफ होता है कि गोदनामे में पत्नी की सहमति नहीं थी।
40 साल की देरी पर खेद-
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी माना कि इस मामले में गोदनामे की वैधता तय करने में 40 साल से अधिक की देरी हुई, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। अदालत ने इसके लिए माफी मांगी।
ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति से बाहर करने की चाल-
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा- हम जानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति से बाहर करने के लिए इस तरह की गोद लेने की चालें चलती हैं। यह एक आम तरीका है बेटियों को उनका हक न देने का। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोदनामा कानूनी रूप से अमान्य है और इसे खारिज करना बिल्कुल सही फैसला है। इलाहाबाद हाईकोर्ट और पहले राजस्व बोर्ड ने जो फैसला दिया था, वह पूरी तरह से विधिसंगत है।
कानून क्या कहता है?
हिंदू दत्तक (Hindu adoption) और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत यदि कोई पुरुष बच्चा गोद लेता है, तो इसकी पत्नी की सहमति अनिवार्य होती है। गोद लेने की प्रक्रिया में ‘देने और लेने’ की वास्तविक रस्म का प्रमाण होना चाहिए। केवल फोटो या बयान से गोदनामा मान्य नहीं हो सकता। इस मामले में पति की पत्नी की सहमति नहीं थी और रस्म का स्पष्ट प्रमाण भी नहीं था, इसलिए गोदनामा अवैध ठहराया गया।