भारत के किस राज्य के लोग देते हैं` सबसे ज्यादा गाली? टॉप-10 राज्यों की लिस्ट देखकर चौंक जाएंगे आप!

भारत जैसे विविध भाषाओं और संस्कृतियों वाले देश में भाषा का व्यवहार एक गहरे सामाजिक संकेतक के रूप में देखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस राज्य के लोग बातचीत में सबसे ज्यादा गालियां देते हैं?

“गाली बंद घर अभियान” (Gaali Band Ghar Abhiyan) नामक एक सर्वे ने इस सवाल का जवाब खोजा है। यह अभियान 2014 से 2025 तक डॉ. सुनील जागलान द्वारा ‘सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन’ और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के तहत चलाया गया था। इसमें शहरी और ग्रामीण भारत से 70,000 लोगों से बातचीत कर डेटा इकट्ठा किया गया-जिसमें शिक्षक, छात्र, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, ऑटो चालक और युवाओं को शामिल किया गया।

टॉप पर है दिल्ली

सर्वे के मुताबिक दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां 80% लोगों ने स्वीकार किया कि वे रोज़मर्रा की बातचीत में गालियों का इस्तेमाल करते हैं। खास बात यह है कि महिलाओं को लेकर की जाने वाली गालियां भी आम हैं। ट्रैफिक, भीड़, प्रतिस्पर्धा और तेज़ रफ्तार ज़िंदगी दिल्लीवासियों को चिड़चिड़ा बनाती है।

भारत के टॉप 10 राज्य जहां दी जाती हैं सबसे ज्यादा गालियां:

स्थानराज्यप्रतिशत (%)
1दिल्ली80%
2पंजाब78%
3उत्तर प्रदेश74%
4बिहार74%
5राजस्थान68%
6हरियाणा62%
7महाराष्ट्र58%
8गुजरात55%
9मध्य प्रदेश48%
10उत्तराखंड45%
11कश्मीरसबसे कम – सिर्फ 15%

क्यों देते हैं लोग गालियां?

  • पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गाली-गलौज कभी-कभी दोस्ती का मजाकिया हिस्सा होती है।
  • यूपी और बिहार में राजनीतिक, पारिवारिक और सड़क झगड़ों में गालियां आम हैं।
  • राजस्थान में गांवों में गुस्से और मज़ाक में हल्की-फुल्की गालियां बोलना साधारण माना जाता है।
  • महाराष्ट्र और गुजरात में शहरी तनाव और यंग जनरेशन का स्लैंग कल्चर कारण है।
  • कश्मीर में धार्मिक, पारिवारिक और भावनात्मक शांति संस्कृति के कारण गालियों का इस्तेमाल न्यूनतम है।

महिलाओं में भी मानी गालियों की आदत

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 30% महिला प्रतिभागियों ने भी गाली देने की बात मानी। यह इस बात को दर्शाता है कि गाली देना अब केवल मर्दाना व्यवहार नहीं रहा, बल्कि यह एक सामाजिक आदत बनती जा रही है।

इस अभियान का उद्देश्य

  • सभ्य भाषा को बढ़ावा देना
  • घर में बातचीत को ट्रैक करना
  • बच्चों और युवाओं को शालीनता सिखाना

“गाली देना” अब केवल झगड़े या गुस्से तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में संवाद का हिस्सा बन चुका है। लेकिन ऐसे अभियान, जैसे “गाली बंद घर”, समाज को सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या यह भाषा आदत बन चुकी है या इसे बदला जा सकता है? आप किस राज्य से हैं और क्या आपको भी अपने आसपास गालियों का बढ़ता चलन दिखता है?

11 साल में 70 हजार लोगों पर सर्वे

सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के फाउंडर और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस डॉक्टर सुनील जागलान ने गाली बंद घर अभियान चलाया और उसी के तहत एक सर्वे किया. इस सर्वे में 11 साल में करीब 70 हजार लोगों को शामिल किया. इन लोगों में युवा, माता-पिता, टीचर, डॉक्टर, ऑटो ड्राइवर, स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट, पुलिसकर्मी, वकील, बिजनेसमैन, सफाईकर्मी, प्रोफेसर, पंचायत सदस्य शामिल थे.

2014 में शुरु किया था गाली बंद घर अभियान

डॉक्टर सुनील जागलान कहते हैं कि गाली देना कोई संस्कार नहीं, बल्कि एक बीमारी है. जब बच्चा बड़ा हो रहा होता है और वह फोन पर या आसपास गाली सुनता है तो वह उसके दिमाग में बैठ जाती है. फिर वही उसकी आदत में शुमार हो जाती है. उन्होंने गाली बंद घर अभियान की शुरुआत साल 2014 में की थी. इस अभियान के तहत पूरे देश की 60 हजार से ज्यादा जगहों पर गाली बंद घर के चार्ट भी लगाए जा चुके हैं. आज उनका ये अभियान विश्व स्तर पर चर्चित हो गया है.

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